Sunday 19 June 2011

प्यार की शक्ति

मैंने पूछा तारों से,
बोलो क्यों अंधियारों में,
चाँद का साथ तुम देते हो,
बदले में क्या फिर लेते हो?

तब तारो ने पूछा मुझसे,
कभी पूछा है वृक्ष की डालों से,
क्यों लदती हैं वो फूलो से,
गर मुरझाना ही है उनको..
क्यों फूलो से सजती हैं वो,
गर गिर जाना ही है उनको?

पूछो माँ से क्यों अपने बच्चो पर,
अपना सर्वस्व लुटाती है,
बदले में क्या वो पाती है,
पूछो नदियों के उस जल से,
जो खो कर अपना निज परिचय,
सागर में मिल जाता है,
बदले में क्या वो पाता है?

समझ गयी मैं एक शक्ति है,
जो सबको बांधे रखती है,
कभी किसी से डरी नहीं जो,
ना ही जो मिट सकती है..

उस प्यार की शक्ति को,
मेरा शत-शत प्रणाम है,
जिससे रोशन साड़ी धरा,
प्रज्वलित ये आसमान है..



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